लेखनी प्रतियोगिता -04-Jan-2024..... तेरा मेरा साथ...
क्या बात हैं बहन....आज आश्रम में कुछ अलग ही रौनक लग रही हैं....!
अरे गिरधारी भाईसाहब आज सावित्री बहन आ रहीं हैं ना....।
आप नये नये आएं हैं ना इसलिए आपको पता नहीं हैं....। सावित्री बहन इस आश्रम की ट्रस्टी हैं...। इस आश्रम की पहली ईंट उन्होने ही रखी थीं...। उनके ऐसे बहुत से आश्रम हैं... इसलिए वो सब जगह नहीं आ जा सकतीं हैं...। यहाँ भी पांच छ: महीने में आतीं हैं...। पर ठंड के मौसम में एक बार अवश्य आतीं हैं....।आश्रम के लोगों को कंबल और रजाइयां भेंट करने....। बहुत नेक दिल हैं... जब भी आतीं हैं... एक अलग सी छाप छोड़ जाती हैं...। भगवान उन को लंबी उम्र दे...। उनके आने की खुशी में ही आज आश्रम में साज सजावट हो रहीं हैं...।
क्या हुआ भाईसाहब...आप कहां खो गए....?
अरे कहीं नहीं बहन.... बस ये सावित्री नाम से मेरी भी कुछ यादें ताजा हो गई...।
ओहह.... । चलिए भाईसाहब आप भी तैयार हो जाइये.... वो आतीं ही होंगी...।
जी बहन...।
गिरधारी अपने ही ख्यालों में खोया हुआ था...। अभी कुछ महीनों पहले ही इस आश्रम में आया था... बहु- बेटे की किच किच और रोज रोज के तानो से परेशान होकर अपना घर छोड़ कर इस आश्रम में आए थे...।
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तकरीबन घंटे भर बाद....
आश्रम में एक बड़ी सी सफेद रंग की गाड़ी आकर रुकी...। आश्रम को फूलो से सजाया गया था...। सभी आश्रम वासियों को सावित्री देवी के स्वागत में फूलों के साथ खड़ा किया गया था...। गिरधारी भी उन्ही में से एक था...।
गाड़ी के रुकते ही... उसमें से हल्के गुलाबी रंग की साड़ी पहने सावित्री देवी उतरी...। उनके अलावा उनके दो बाडी गार्ड भी उनके साथ उतरे....।
उनके उतरते ही सभी फूल बरसाने लगे....। लेकिन गिरधारी की नजर जैसे ही सावित्री पर पड़ी उसने तुरंत अपना चेहरा अपने गले में बंधे मफलर से ढंक दिया...।
सावित्री सभी का अभिवादन स्वीकार करतीं हुईं.... सभी को हाथ जोड़ती हुई... धीरे धीरे आगे बढ़ रहीं थीं...। आश्रम के संचालकों से मिलकर वो कुछ देर बाद आश्रम के लोगों से भी मिलने लगी...।
गिरधारी उनको अपने पास आता देख अपने कदम पीछे लेकर वहां से हट गया और भीड़ का फायदा उठाकर दरवाजे की ओट में छिप गया...।
सभी से मिलकर सावित्री ने सभी को कंबल, स्वेटर और रजाइयां भेंट की.... । उसके बाद सावित्री ने सभी आश्रम वासियों के साथ खाना भी खाया और सभी से बैठकर बातें करने लगी...। घंटों वहां बिताए... लेकिन इस पूरे समयावधि में गिरधारी उनके सामने नहीं आएं....। वो चोरी छिपे उसको देख रहें थे... पर एक बार भी सावित्री के सामने नहीं आए...। शाम ढलते ही सावित्री देवी सबसे विदा लेकर, मिलकर जाने लगी....।
अपनी गाड़ी में बैठकर वो आश्रम से बाहर निकल ही रहीं थीं की अचानक उन्होंने गाड़ी रुकवा दी...।
क्या हुआ मैडम.... गाड़ी क्यूँ रुकवा दी आपने...।
सावित्री बिना कुछ बोले गाड़ी से उतरी... और तेज कदमों से गिरधारी की ओर चल दी...। दर असल... सावित्री ने अपनी गाड़ी के साइड ग्लास में से गिरधारी को देख लिया था... जो उनके लौटते ही बाहर आया था...।
इस बार गिरधारी को छिपने का कोई मौका ही नहीं मिला... वो कुछ सोचता इससे पहले ही सावित्री उसके सामने खड़ी हो गई थीं... वो आश्चर्य से उसकी तरफ़ देखकर बोलीं :- गिरधर.... तुम गिरधर ही हो ना....!! तुम यहाँ....?
गिरधर नहीं.... गिरधारी...।
गिरधारी होंगे तुम दुनिया के लिए.... मेरे लिए गिरधर ही थे और गिरधर ही रहोगे....। लेकिन तुम... यहाँ कैसे...!
क्या करता राधा.... तुम्हारे गिरधर को उसका परिवार रास ही नहीं आया...।
दोनों के चेहरे की चमक देखते ही बनतीं थीं...। आसपास खड़े सभी लोग उनकी इस बातचीत से खुश भी थे और आश्चर्य में भी... किसी की कुछ समझ नहीं आ रहा था... पर उन दोनों की खुशी देखते ही बनतीं थी....।
आखिर कार कुछ देर बाद एक संचालक ने पूछा :- मैडम आप जानते हैं एक - दूसरे को...!
हां.... बहुत अच्छे से जानती हूँ...। लेकिन तुम पूरा दिन कहाँ छिप गये थे...।
मैंने कार से उतरते ही तुम्हें पहचान लिया था... पर पता नहीं क्यूँ तुम्हारे सामने आने की हिम्मत नहीं हो रहीं थी.. इसलिए यहां वहां छिप रहा था...।
तुम कितना भी छिप लो गिरधर.... हमें आखिर मिलना ही था... तो अंत में ही सही मिल लिए...।
सावित्री ने अपने साथियों को कार में इंतजार करने को कहा और आश्रम के सभी लोगों से भी आग्रह किया की उनको कुछ देर गिरधारी से अकेले में बात करने दी जाएं...।
गिरधारी ने बरामदे में ही एक बैंच पर सावित्री को बिठाया और अपने कमरे से कंबल लाकर सावित्री को दिया...। सभी के जातें ही गिरधारी ने कहा :- आखिर कार तुमने वो सब हासिल कर ही लिया जो तुम चाहतीं थीं...।
.... सब कुछ तो नहीं... पर कुछ तो हासिल कर लिया...। वैसे तुम बताओ... यहाँ देखकर बहुत आश्चर्य हुआ मुझे...।
आश्चर्य किस बात का.... हम जैसे बुजुर्ग लोगों की आखिरी मंजिल यहीं तो हैं...।
लेकिन तुम.... तुम्हारी.... मिसेज...!
उसको गुजरे सालों हो गये....। एक बेटा हैं... बहु हैं...। जब तक कमा रहा था... तब तक ठीक था...। लेकिन बढ़तीं बिमारी के चलते घर पर मेरा बैठना उनको खटकने लगा...। आए दिन लड़ाई झगड़े.. ताने... गालियां....। आखिरकार परेशान होकर उनसे विदा लेकर सड़कों पर भटकने लगा...। फिर कुछ राहगीरों की मदद से यहां पहुँच गया...। ओर तुम बताओ.... तुम्हारे परिवार में...
कोई नहीं हैं...।
मतलब...!
मतलब... मेरा कोई परिवार नहीं हैं...। ये आश्रम के लोग....ही मेरे सब कुछ हैं...।
मैं समझा नहीं राधा...!
गिरधर से अलग होकर भला राधा अपनी दुनिया कैसे बसा सकतीं हैं...। मेरे लिए तुम ही पहले और आखिरी शख्स थे... मैंने कहा था तुमसे.... तुमसे अलग होकर मैं किसी ओर की नहीं हो पाऊंगी...। बस नही हो पाई... अकेले ही अपने सपने पूरे करने निकल पड़ी...।
कहा तो मैंने भी राधा.... लेकिन मैं परिवार के हाथों मजबूर हो गया था.... जब मम्मी ने अपनी जान देने की धमकी दे दी तो... मुझे लगा तुम भी....। लेकिन सच कहूं तो मजबूरी में बंधे रिश्ते को मैं दिल से कभी नहीं निभाया... बस अपनी फर्ज समझ कर साथ रह रहा था... शायद मेरे ऐसे रवियै की वजह से ही सुधा इस दुनिया को अल्प समय में छोड़ कर चलीं गई.... कहीं ना कहीं तुम्हारी तरह मैं उसका भी गुनहगार तो था.... इसलिए बहु- बेटे के हाथों जलील होना पड़ा....।
नहीं गिरधर.... ये सब तो कर्मों का खेल हैं...। हमारे हाथ में कुछ नहीं होता हैं...। हर किसी को अपना मनचाहा तो नहीं मिल सकता ना...। लेकिन हां.... ऊपरवाले ने देर से सही... मुझे तुमसे मिलाया... ये ही मेरे लिए बहुत हैं...। इन सांसों के थमने से पहले तुम्हें देख तो पाई...।
सावित्री के इतना कहते ही गिरधारी ने अपना हाथ उसके होठों पर रखते हुए कहा :- राधा प्लीज....ऐसी बातें मत करो...। हमारा बिछड़ना.... हमारे हाथ में नहीं था... लेकिन उम्र के इस पड़ाव में आकर हमारा फिर से मिलना.... ये तो साबित करता हैं की प्यार में बहुत ताकत होतीं हैं... अगर हम सच्चे मन से कुछ मांगे तो एक ना एक दिन वो हासिल जरूर होता हैं...।
सावित्री मुस्कुरा कर बोलीं :- हां.... वो तो हैं... शाहरुख खान भी यहीं कहता हैं.... " अगर किसी चीज़ को तुम दिल से चाहों तो पूरी कायनात उसे तुमसे मिलाने में लग जाती हैं... "।
हाहाहा..... तुम्हारा फिल्मों का शौक़ अभी भी वैसा ही हैं राधा..।
हां.... वो तो हैं... वो भी....
दोनों साथ में बोले..... शाहरुख खान की....।
हंसते बातें करते कुछ देर बाद सावित्री बोलीं :- गिरधर.....क्या अब मेरे इंतजार को मंजिल तक पहुंचाओगे... !
नहीं राधा..... पहले मैं परिवार की वजह से मजबूर था और अब उम्र के इस पड़ाव में आकर समाज में मैं तुम्हारी पहचान और रुतबे को दागदार नहीं कर सकता...। ओर वैसे भी राधा... प्यार तो निभाने का नाम हैं... हम एक दूसरे से दूर रहकर भी अपनी अपनी तरफ़ से प्यार निभा रहें थे... और अब यहाँ रहकर भी निभा सकते हैं....।
लेकिन गिरधर तुम यहां इस आश्रम में.... ऐसे में मुझे.....
राधा.... ये आश्रम भी तो तुम्हारा ही हैं ना....। जब मन करेगा मिल लेंगे...। आखिर कार अब किसी बंधन का डर तो नहीं हैं...।
ठीक हैं गिरधर... जैसा तुम कहो...। मैं तो पहले भी तुम्हारें फैसले से खुश थीं.... आज भी तुम्हारें फैसले का सम्मान करतीं हूँ....। हमारे पुनर्मिलन का भी अगर ये ही अंजाम हैं तो ये ही सही....। अच्छा अभी चलतीं हूँ.... ठंड बहुत बढ़ रहीं हैं... तुम भी भीतर आराम करो.... अपना ख्याल रखना...।
हां राधा.... अब तो रखना पड़ेगा तुम्हारें लिए.... और तुम्हें मेरे लिए....।
गुड नाईट.... माय लकी मैन....।
हाहाहा.... तुम्हें अभी भी याद हैं.....।
तुम्हें भी गुड नाईट .... माय फोरएवर यंग लैडी....।
सावित्री मुस्कुराती हुई वहां से चल दी....। सालों बाद ही सही आखिर कार आज उसे अपना पहला प्यार फिर से जो मिल गया था...।
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बेदाग़ और बेपनाह इश्क की अनदेखी और अनोखी कहानी का सुखद अंत....।
#दैनिक प्रतियोगिता...
Mohammed urooj khan
18-Jan-2024 01:36 PM
बहुत सुंदर कहानी mam 👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾आप बहुत अच्छा लिखती है ऐसी hi लिखती रहा करे 🥰🥰🥰
Reply
Gunjan Kamal
08-Jan-2024 09:20 PM
👏👌
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Diya Jethwani
08-Jan-2024 02:13 PM
Thank you all . 🙏
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